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दिल्ली की नारीवादी संस्था निरंतर ट्रस्ट  ने 2002 में सहजनी शिक्षा संघ की शुरुआत की. फिर इसे नाम दिया गया सहजनी शिक्षा केंद्र. निरंतर का मानना था कि साक्षरता कार्यक्रम के लिए समय और संसाधन दोनों अधिक चाहिए. इसलिए सहजनी शिक्षा केंद्र जमीनी स्तर पर टिककर काम करने के मकसद को लेकर चला. 2013 में इसका गैर-सरकारी संस्था के रूप पंजीकरण हुआ और यह स्वतंत्र संस्था के रूप में काम करने लगा. इसकी बनावट में फेर-बदल हुआ और प्रबंधन में भी.

संदर्भ – सरकारी और गैर-सरकारी बड़े-बड़े अभियानों ने सालों पहले पूरी दुनिया से असाक्षरता को खत्म करने का दावा किया था. भारत ही नहीं, दुनिया के एक तिहाई देश अभी तक इससे जूझ रहे हैं. 2014 के आँकड़ों के हिसाब से भारत में पूरी दुनिया के असाक्षर लोगों का 37% है. उसमें सबसे ज्यादा महिलाएँ हैं, खासकर दलित-आदिवासी और मुसलमान महिलाएँ. यह पितृसत्ता की जकड़बंदी, जाति-धर्म आदि के भेदभाव भरे नियम-कायदों और सरकारी नीतियों का ही नतीजा है.

1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन शुरू हुआ. इसमें सरकार, नागरिक संगठन, शिक्षाकर्मी, महिला आंदोलन सब शामिल थे.  जल्दी ही ग्रामीण महिलाओं को ध्यान में रखकर महिला समाख्या कार्यक्रम की नींव रखी गई.  फिर भी सरकार का एकमात्र जोर बच्चों की शिक्षा पर था. तब भी समाज में जेंडर, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि की गैर बराबरी होने के कारण सारे बच्चे स्कूल तक नहीं पहुँच पाए. वे पहले से मौजूद असाक्षर बालिग लोगों की संख्या में जुड़ते चले गए. गरीब और वंचित वर्ग की महिलाएँ लगातार हाशिये पर ही रहीं.

महिलाओं के लिए महिलाओं के नजरिए से सीखने-सिखाने के तरीकों और सामग्री की जरूरत अहम जरूरत थी. तब 1994 में निरंतर ने महिला समाख्या के साथ मिलकर महिलाओं के लिए आवासीय साक्षरता केंद्र चलाने की पहल की. पहली बार नारीवादी नजरिए से पाठ्यचर्या और पठन-पाठन सामग्री बनाई गई. एक तरफ सीखने और सिखानेवाली के बीच की सत्ता को चुनौती दी गई तो दूसरी तरफ भाषा की सत्ता को भी चुनौती मिली. महिलाओं की अपनी भाषा और उनकी अपनी ज़िंदगी से जोड़कर काम की शुरुआत की गई.

इलाका – 2000 के नवंबर महीने में निरंतर ने जमीनी स्तर पर हस्तक्षेप करने के लिए इलाका चुनने पर सोचना आरंभ किया. शर्त थी कि इलाका दलित बहुल हो, जहाँ सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं की पहुँच न हुई हो और जहाँ बुनियादी सुविधाएँ हों. इसके लिए जो प्रक्रियाएँ अपनाई गईं, वे थीं – लोगों और अधिकारियों से मिलना, सुझाव लेना, जानकारी इकट्ठा करना, बैठक करना आदि.

महिलाओं के साथ काम करनेवाली कार्यकर्ताओं की तरफ से जमीनी हस्तक्षेप करने के लिए बुंदेलखंड के ललितपुर जिले का नाम सुझाव के तौर पर आया. निरंतर भी बुंदेलखंड के बाँदा-कर्वी में काम करने के कारण वहाँ के स्थानीय मुद्दों से परिचित था. ललितपुर की गिनती भारत के सबसे पिछड़े जिलों में होती थी. इसके अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वाले क्षेत्र में महिला साक्षरता दर 20% से भी कम थी. लिंग अनुपात 2001 में 1000 पर 884 था. समाज में जाति के आधार पर बहुत भेदभाव था. यहाँ तक कि दलित महिलाओं को सवर्ण लोगों के सामने चप्पल पहनने की इजाजत नहीं थी. बहुतों को चप्पल उतारकर अपने सर पर रखकर सवर्ण लोगों के सामने से गुजरना होता था.

आरंभिक तैयारी के बाद सिलसिला चला ललितपुर जिले के ब्लॉक और गाँवों के नक्शे समझने का. 2001 के जनवरी महीने में इलाके को परखने के लिए पहला दौरा किया गया. मई-जून के महीने में गाँवों का लंबा-लंबा दौरा चल रहा था. धीरे-धीरे फील्ड विजिट नियमित होती गई. कहाँ साक्षरता केंद्र बनाया जाए, इसके लिए 5 गाँवों में PRA (सहभागितापूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन) किया गया और दूसरे गाँवों में सघन बैठकें की गईं.

साक्षरता और शिक्षा के काम का खाका बनाने के साथ आर्थिक मदद हासिल करने के लिए प्रस्ताव लिखा जा रहा था. साक्षरता का काम टिकाऊ हो सके, इसलिए सहजनी शिक्षा केंद्र को संसाधनों की जरूरत थी. 2002 के मई महीने में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट – SDTT से अनुदान की मंजूरी मिली. इससे काम को गति मिली. 2002 के अक्टूबर-नवंबर से मेहरौनी ब्लॉक के चुने हुए 10 गाँवों में साक्षरता केंद्र खुल गए. पहले मेहरौनी और मडावरा ब्लॉक दोनों का चुनाव हुआ था, मगर मडावरा में बुनियादी सुविधाओं के नहीं रहने के कारण मेहरौनी से काम शुरू किया गया.

चुनौतियों की कमी नहीं थी. उस समय जो मुख्य काम थे उनमें हरेक की अपनी अपनी यात्रा है, अपना किस्सा है.

  • गाँवों में माहौल बनाना
  • कार्यकर्ताओं का चुनाव
  • कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण
  • शिक्षिकाओं का चुनाव (विज्ञापन, आवेदन, इंटरव्यू, लिखित कार्य, समूह चर्चा, क्षेत्र भ्रमण)
  • शिक्षिकाओं का प्रशिक्षण (खास कर जेंडर और सीखने-सिखाने की पद्धति पर)
  • सीखनेवाली महिलाओं और किशोरियों की गोलबंदी
  • कार्यालय, साक्षरता केंद्र और बैठक की जगह का चुनाव
  • पठन-पाठन की सामग्री का निर्माण
  • ललितपुर की बुंदेली भाषा का इस्तेमाल [प्राइमर का पाठ]
  • गुणवत्ता और निरंतरता बनाए रखने की निगरानी