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साक्षरता और शिक्षा

सहजनी शिक्षा केंद्र महिलाओं, खासकर दलित, आदिवासी और वंचित वर्ग की महिलाओं के लिए साक्षरता और शिक्षा का कार्यक्रम चला रहा है. यहाँ याद रखना जरूरी है कि ‘महिला’ कहने का मतलब ही है जेंडर आधारित भूमिकाओं और नियम-कायदों से बंधी हुई महिला. महिलाओं का समूह एकरंगी नहीं है. हरेक महिला का संदर्भ अलग है. उसकी विविधता को समझकर सहजनी शिक्षा केंद्र अपनी योजना बनाता है.

साक्षरता कार्यक्रम को दो चरणों में बाँटा गया है – बुनियादी (बेसिक) साक्षरता और उच्च (एडवांस) साक्षरता. दोनों 18-18 महीने का होता है. पहले चरण में भाषा और गणित की बुनियादी क्षमताओं पर काम किया जाता है. उनसे कैलेंडर, घड़ी, मोबाइल जैसी रोजाना की चीजों के इस्तेमाल के साथ मनरेगा या बैंक के फॉर्म भरने की कामकाजी क्षमताओं को जोड़ा जाता है. दूसरे चरण में बुनियादी साक्षरता को मजबूत करना और आत्मविश्वास के साथ नाप-तौल जैसी कामकाजी क्षमताओं के इस्तेमाल पर जोर रहता है. आगे चलकर साक्षरता कार्यक्रम को विशेष मुद्दों पर केंद्रित किया गया.

इस काम में चुनौतियाँ कदम कदम पर आईं, जिनमें मुख्य चुनौतियाँ थीं – महिलाओं की भागीदारी, कार्यकर्ताओं और शिक्षिकाओं का चयन, सीखने-सिखाने की पद्धति और सामग्री.

दिशा

सहजनी शिक्षा केंद्र महिलाओं के नजरिए से उनके अनुभवों को आधार बनाकर साक्षरता और शिक्षा का कार्यक्रम चलाता है. सीखने-सिखाने के तरीके और सामग्री से लेकर जगह तक तय करने में महिलाओं और किशोरियों की भागीदारी होती है. उनके संदर्भ, उनके हक और उनकी आवाज को जगह दी जाती है.

अधिकतर यह माना जाता है कि साक्षरता सिर्फ लिखने-पढ़ने का हुनर है और महिलाओं को अलग अलग क्षेत्रों में सशक्त बनाना अधिक मायने रखता है. जबकि सहजनी शिक्षा केंद्र साक्षरता और शिक्षा की प्रक्रियाओं से सशक्तीकरण की प्रक्रिया को जोड़कर देखता है. नारीवादी शिक्षण पद्धति, सीखने-सिखाने के तौर-तरीकों को परखने के लिहाज से भी यह महत्त्वपूर्ण है.

सहजनी शिक्षा केंद्र मुख्यतः दलित और आदिवासी महिलाओं के बीच काम करता है. उनका बड़ा हिस्सा लगभग सभी बुनियादी अधिकारों और सुविधाओं से वंचित है. ऐसे में अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनको साक्षरता और शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है. तभी एक नागरिक होने की गरिमा के साथ महिलाएँ जी पाएँगी. तभी वे सशक्त हो पाएँगी और पंचायत से लेकर अन्य लोकतांत्रिक संगठनों में अपनी भूमिका निभा पाएँगी. शिक्षा की ताकत से लैस होकर वे पूरे समाज की बनावट पर असर डाल पाएँगी.

रास्ता: रणनीतियाँ

सहजनी शिक्षा केंद्र महिलाओं की जरूरत और उनको मिलनेवाली सुविधा-असुविधा के हिसाब से अपने कार्यक्रम का संचालन करता है. चूँकि महिलाओं की चुनौतियाँ अलग अलग किस्म की हैं, एक रणनीति सफल नहीं हो सकती है. इसलिए महिला-केंद्रित अलग अलग रणनीतियाँ अपनाई गई हैं. ये हैं – साक्षरता केंद्र, सूचना केंद्र, गाँव स्तरीय साक्षरता कैंप, आवासीय कैंप, जनि अधिकार समिति, झोला पुस्तकालय, स्थानीय संदर्भ समूह. इनमें नियमित चलनेवाले साक्षरता केंद्र हैं तो कभी कभी आयोजित होनेवाले आवासीय कैंप भी. कभी गाँव के स्तर पर महिलाओं को एकजुट किया जाता है तो कभी ब्लॉक के स्तर पर.

(क) साक्षरता केंद्र
साक्षरता और शिक्षा के कार्यक्रम का नियमित होना बहुत जरूरी है. साथ ही, उसमें शामिल होनेवाली महिलाओं के जीवन की सच्चाइयों से उनका जुड़ाव होना जरूरी है. सहजनी शिक्षा केंद्र ने साक्षरता केंद्र – सेंटर की योजना बनाते समय इन बातों का ध्यान रखा. सीखने-सिखाने की जगह के अलावा साक्षरता केंद्र महिलाओं की अपनी जगह बनी. इसलिए साक्षरता केंद्र के लिए जगह चुनने से लेकर उसके चलने का समय तय करने तक में महिलाओं ने हिस्सेदारी ली. फैसला हुआ कि गाँव का साक्षरता केंद्र हफ्ते में 5 दिन 4 घंटे के लिए चलेगा. गाँव-घर से सबको इकट्ठा करना, सामान जुटाना, व्यवस्था करना, पढ़ना-पढ़ाना – सारी जिम्मेदारी महिलाओं की होगी.

साक्षरता केंद्र के शुरू होने से पहले गाँवों में संपर्क किया जाता है. उसमें महिलाओं और गाँव के लोगों के साथ बैठकें की जाती हैं और जत्था भी निकाला जाता है. शुरुआती सालों में जत्था निकालना बहुत कारगर था. इसमें महिलाओं की सांस्कृतिक मंडली जगह जगह जाकर नाटक, गाने आदि प्रस्तुत करती थी। दर्शक लगभग पूरा गाँव होता था.

महिलाओं की तरफ से साक्षरता केंद्र की बड़ी माँग रहती है, लेकिन सारे संसाधन जुटाना संभव नहीं हो पाता है. माँग, जरूरत और सुविधा के आधार पर साक्षरता केंद्र खोले जाते हैं. आम तौर पर जिस गाँव में साक्षरता केंद्र होता है वहाँ उस गाँव की महिलाएँ आती हैं. कभी कभी आसपास के गाँवों की इच्छुक महिलाएँ भी उसमें आती हैं.

अभी तक सहजनी शिक्षा केंद्र ने महरौनी, मडावरा और बिरधा ब्लॉकों में कुल 175 केंद्र चलाए हैं। शुरुआत 20 साक्षरता केंद्र से हुई थी. उनमें लगातार बढ़ोत्तरी होती गई, मगर कई साक्षरता केंद्र बंद भी हुए. कुछ बंद होकर फिर खुले तो कुछ ने केवल जगह बदली या समय बदला.

साक्षरता केंद्र में महिलाएँ केवल लिखना-पढ़ना या जोड़-घटाव करना नहीं सीखती हैं. वे अपनी रोजमर्रा के मसलों पर भी बातचीत करती हैं. यहाँ गुजारे जानेवाले घंटे उनको हुनरमंद और सशक्त बनाते हैं. यहाँ सीखी हुई क्षमताओं को वे अपने हर दिन के काम-काज में इस्तेमाल करती हैं. जैसे खरीद-बिक्री का लेखा जोखा रखना, मजदूरी या राशन का हिसाब रखना, बस या ट्रेन का नंबर पढ़ना, बच्चों की पढ़ाई को समझना.

(ख) सूचना केंद्र
लंबे समय तक जिन गाँवों में साक्षरता केंद्र चलाए गए, वहाँ दूसरे तरीके से साक्षरता और शिक्षा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया है. तीन साल में बुनियादी (बेसिक) साक्षरता और उच्च (एडवांस) साक्षरता के चरण पूरे हो जाते हैं. उसके बाद 26 सूचना केंद्र पंचायत स्तर पर खोले गए हैं. यह हफ्ते में 6 दिन सुबह से शाम तक चलता है. इसमें साक्षरता के नियमित काम के साथ मनोरंजन और जीवन कौशल की गतिविधियाँ होती हैं. साथ ही जरूरी मुद्दों पर जानकारी दी जाती है. गाँव के पुरुष भी इससे लाभ उठाते हैं.

एक तरह से साक्षरता केंद्र का विस्तार है सूचना केंद्र. इसलिए इसे साक्षरता और सूचना केंद्र भी कहा जाता है (Literacy and Information Centre – LIC). मकसद यह है कि गाँव स्तर के सरकारी ढाँचे के साथ काम करते हुए सूचना केंद्र महिलाओं के लिए संसाधन केंद्र – रिसोर्स सेंटर की भूमिका निभा सके. इसलिए सरकारी कार्यक्रमों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की जानकारी यहाँ से मिलती है. गाँव के लोग तरह तरह के फॉर्म यहाँ से ले सकते हैं. पुस्तकालय इसका महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

(ग) गाँव स्तरीय साक्षरता कैंप
जहाँ साक्षरता केंद्र रोजाना चलनेवाला केंद्र है, वहीं साक्षरता कैंप सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को तेज करने के मकसद से 5 या 7 दिन के लिए आयोजित किया जाता है. ये कैंप अलग अलग मुद्दों पर केन्द्रित होते हैं, जैसे मनरेगा, स्वास्थ्य या राशन. कभी कभी कम साक्षरता क्षमता वाली महिलाओं के लिए विशेष कैंप आयोजित किए जाते हैं. गाँव में साक्षरता का माहौल बनाने और महिलाओं को एकजुट करने के मकसद से भी कैंप होते हैं.

किस गाँव में कैंप लगेगा, इसका फैसला इच्छुक महिलाओं और किशोरियों की संख्या और उनकी तरफ से जानकारी की माँग के आधार पर होता है. इसमें सहजनी शिक्षा केंद्र की कार्यकर्ता और शिक्षिकाएँ कैंप जहाँ आयोजित हो रहा है उसी गाँव में 5 या 7 दिन रुकती हैं और दिन में लंबे समय तक महिलाओं के साथ काम करती हैं.

साक्षरता कैंप सीखनेवालियों के लिए आवासीय नहीं होता है. वे दिन भर में 4 से 6 घंटे कैंप में रुककर जमकर सीखने का अभ्यास करती हैं. इससे उनकी क्षमताएँ मजबूत होती हैं और आपसी रिश्ता भी बनता है. करीब ऐसे 300 से भी अधिक कैंप किये जा चुके हैं.

(घ) आवासीय कैंप
घर और खेती वगैरह के काम से छुट्टी निकालकर अपने गाँव के साक्षरता केंद्र में आना जहाँ महिलाओं के लिए आसान है, वहीं उनके समय को लेकर काफी खींचतान रहती है. खासकर जब रोपाई या कटाई का मौसम हो या शादी-ब्याह और त्योहारों का समय हो तो महिलाओं का साक्षरता केंद्र आना मुश्किल हो जाता है. महिलाओं को अपनी साक्षरता को मजबूत करने के लिए, अपने लिए समय निकालने की मोहलत न घर-परिवार देता है न समुदाय. इसलिए सहजनी शिक्षा केंद्र ने महिलाओं की रोजाना की समस्याओं से दूर ब्लॉक स्तर पर आवासीय कैंप आयोजित किए. ललितपुर में अभी तक कुल 30 से भी ज्यादा आवासीय कैंप आयोजित किये जा चुके हैं। उनमें 900 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया है।

आवासीय का मतलब ही है कि दिन-रात साथ रहना. इसके लिए महिलाओं और किशोरियों का उत्साह देखने लायक रहता है, मगर उनके आने-जाने पर पाबंदी होने के कारण घर से दूर रात गुजारने की इजाजत मिलना भी आसान नहीं होता. अक्सर घरवालों से बात करनी होती है – उसमें कभी पिता या भाई से बात करो, कभी पति या ससुर या जेठ-देवर से अनुमति लो. उन्हें भरोसा दिलाना होता है कि कैंप पढ़ने-लिखने के मकसद से चलाया जाता है और उससे महिलाओं को लाभ मिलेगा.

यही नहीं, कैंप चलने के दौरान भी घरवाले आकर जाँचते थे कि महिलाएँ वहाँ क्या कर रही हैं. या घर की परेशानियों का हवाला देकर कैंप के बीच से ही उनको ले जाने की कोशिश करते थे. आज तक कैंप में जाना कई महिलाओं के लिए मार-पीट और झगड़े का कारण बनता है. लेकिन इस मौके ने उनको मजबूत भी बनाया. उनके आने-जाने का दायरा बढ़ा. अभी तक वे हद से हद तक मायके या ससुराल के लिए घर से बाहर जाती थीं, मगर अब वे अपने लिए निकलने लगीं.

अधिकतर ये आवासीय कैंप 5 से 10 दिन तक चलते हैं. पहला कैंप 2003 में मेहरौनी ब्लॉक में आयोजित किया गया था. उस इलाके में मई-जून के महीने में खेती का काम न के बराबर होता है, इसलिए उस दौरान कई आवासीय कैंप चलाए गए. जरूरत और महिलाओं का उत्साह देखते हुए काम की रफ्तार बढ़ी. अगले एक साल में 11 आवासीय कैंप में सैंकड़ों महिलाओं ने लाभ उठाया.

इन आवासीय कैंपों में लंबे समय तक सत्र चलाए जाते हैं. लिखने-पढ़ने के हुनर के साथ अलग अलग मुद्दों पर जमकर चर्चा होती है. महिलाएँ एक-दूसरे को भी समझती हैं. सघन पढ़ाई करने में आवासीय कैंप ने सचमुच महिलाओं जौर किशोरियों की मदद की है. कैंप में शामिल ढेर सारी महिलाओं और किशोरियों ने अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाने के मकसद सेकक्षा 5 और 8 की परीक्षाएँभी दीं. कैंप का पाठ्यक्रम अलग-अलग होता रहा है. यह महिलाओं की जरूरत के आधार पर तय किया जाता है. कभी भाषा कौशल को लेकर, कभी गणित की क्षमताओं पर तो कभी कानूनी अधिकार को लेकर कैंप किए जाते हैं. साल भर में कम से कम तीन आवासीय कैंप की योजना रहती है. उसमें प्रशिक्षक के तौर पर संस्था के बाहर और भीतर दोनों जगह के लोग बुलाए जाते हैं.

(ड.) जनि अधिकार समिति
साक्षरता केंद्रों में कुछ महिलाएँ और किशोरियाँ काफी नियमित रहती हैं. सीखने-सिखाने के काम में वे दिलचस्पी तो लेती हैं, उनमें नेतृत्व क्षमता भी होती है. उनको चिह्नित करके गाँव स्तर पर नवसाक्षर महिलाओं और किशोरियों का एक कैडर तैयार किया गया जिसे जनी अधिकार समिति का नाम दिया गया है. उनको धीरे-धीरे संस्था के कामों की जिम्मेदारी दी गई, जैसे पठन-पाठन सामग्री के बक्से की चाभी देना, महिलाओं को इकट्ठा करना. फिर समुदाय में नेतृत्व सँभालने का पूरा जिम्मा समिति की महिलाओं को दिया जाने लगा. इसके लिए उनको अलग से प्रशिक्षण दिया गया. मेहरौनी और मडावरा के करीब 62 गाँवों में यह समिति है.

शुरू में जिन गाँवों में साक्षरता केंद्र नहीं चल रहे थे, वहाँ समिति का गठन किया गया. आगे चलकर साक्षरता केंद्र वाले गाँवों में भी समिति बनी. औसतन हर गाँव में 4-5 नवसाक्षर महिलाओं को समिति की जिम्मेदारी दी गई. मुद्दा आधारित साक्षरता कार्यक्रम में समिति की महिलाएँ बहुत सक्रिय रहीं. उन्होंने अपने अधिकारों को लेकर चलनेवाले संघर्ष की अगुआई की, लेकिन हर मोर्चे पर लगातार काम करना संभव नहीं हो पाया. इस कारण धीरे-धीरे समिति का बिखराव हो गया.

(च) झोला पुस्तकालय
महिलाओं की लिखने-पढ़ने की क्षमता और ज्ञान का दायरा बढ़ाने की दिशा में सहजनी शिक्षा केंद्र लगातार नए प्रयोग करता रहा है. इसी कड़ी में था झोला पुस्तकालय, एक चलता-फिरता पुस्तकालय. किताबें लाने-ले जाने के लिए टाँगनेवाला जूट का झोला था. उसमें 6 बड़े-बड़े पॉकेट थे और उनके अन्दर भी 6 छोटे-छोटे पॉकेट थे. उस झोले को मोड़ा जा सकता था.

महिलाओं और किशोरियों की जानकारी से भरी किताबों तक आसानी से पहुँच हो, इसे ध्यान में रखकर झोला पुस्तकालय की योजना बनाई गई थी. उद्देश्य था कि ग्रामीण इलाके में पढ़ने की संस्कृति को बल मिले, जेंडर, जाति, हिंसा, स्वास्थ्य, कानून और अधिकार के मुद्दे पर रोचक सामग्री का आदान-प्रदान हो सके, नव साक्षर महिलाओं व किशोरियों की साक्षरता मजबूत हो.

मेहरौनी ब्लॉक के 24 गाँवों में झोला पुस्तकालय शुरू हुआ था. उसके पहले ग्रामीण इलाकों में पुस्तकालय के ढाँचे और उसके संचालन के तरीके जाने गए. गाँव-गाँव घूमकर महिलाओं के साथ बैठक की गई. तय किया गया कि पुस्तकालय साक्षरता केंद्र का हिस्सा होगा. उसको चलाने का जिम्मा उस गाँव की किशोरियाँ और महिलाएँ लेंगीं. वे बाकी लोगों को सदस्य बनाएँगी. सहजनी उसकी निगरानी करेंगी.

झोला पुस्तकालय में महिलाओं की दिलचस्पी और उनकी साक्षरता के स्तर के मुताबिक किताबें और पत्र-पत्रिकाएँ चुनी गईं. उनमें कविता, कहानी, चित्रकथा, उपन्यास, आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, पत्र, डायरी, नाटक, लेख आदि सभी विधाओं की किताबें थीं. ध्यान रखा गया कि उन किताबों पर आपस में चर्चा हो, ज्ञान-विज्ञान की जानकारी तो मिले ही, लेकिन उसके साथ मनोरंजन जरूर हो. पुस्तकालय की किताबों पर नंबर डालना और उनको विषय के हिसाब से छाँटना, पढ़ने के लिए किताबें देना-लेना भी एक काम था.

(छ) साक्षरता संदर्भ समूह
जिन महिलाओं की साक्षरता मजबूत थी उनको चुनकर सहजनी शिक्षा केंद्र में स्थानीय स्तर पर साक्षरता संदर्भ समूह (लिटरेसी रिसोर्स ग्रुप – LRG) बनाया गया.  इसके लिए महिलाओं के समूह को ट्रेनिंग दी गई. उनकी क्षमताओं को जेंडर, जाति और शिक्षा के मुद्दों के इर्द गिर्द और महिलाओं को गोलबंद करने (मोबलाइजेशन) के कौशल को ध्यान में रख कर विकसित किया गया.

साक्षरता संदर्भ समूह की महिलाएँ केंद्रों और कैंपों में आ चुकी महिलाएँ हैं. ये अब मजबूत कार्यकर्ताओं में तब्दील हो चुकी हैं. ये अपने गाँव की समितियों में नेतृत्व की भूमिका में हैं और अन्य गाँवों की महिलाओं को जेंडर, साक्षरता, मनरेगा, और शिक्षा का अधिकार मुद्दों पर एकजुट करती हैं. ये साक्षरता केंद्रों और शिक्षा का अधिकार कानून के तहत स्कूलों की निगरानी में अहम भूमिका निभाती हैं. यह एक ठोस उदाहरण है कि किस तरह शिक्षा के जरिए महिलाओं की योग्यता बढ़ती है. इससे उनका आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ जाता है.

बिना बाधा के आगे नियमित रूप से पढ़ने के लिए फेलोशिप की योजना भी बनाई गई. खासकर आदिवासी महिलाओं को इसके लिए चुना गया. फेलोशिप की अवधि 4 महीने की थी. इसका परिणाम अच्छा रहा और करीब 20 महिलाएँ मडावरा ब्लाक की स्थानीय संदर्भ समूह के रूप में सहजनी शिक्षा केंद्र से जुडीं.

अधिकार और सशक्तीकरण

सहजनी शिक्षा केंद्र के मुख्य उद्देश्यों में से एक है स्थानीय मुद्दों को साक्षरता और शिक्षा के जरिए संबोधित करना ताकि महिलाएँ अपने अधिकारों और हकदारी के लिए लड़ सकें. संस्था हमेशा साक्षरता और शिक्षा की प्रक्रियाओं को अधिकार और सशक्तीकरण से जोड़कर चलती है. यह महिलाओं और किशोरियों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी देने से लेकर उन्हें हासिल करने की लड़ाई के रास्ते पर साथ है.

इस राह में सबसे बड़ी चुनौती है – महिला होने की पाबंदियों से जूझना और समाज के भेदभाव भरे नियम-कायदों पर सवाल उठाना. इसके लिए सहजनी शिक्षा केंद्र महिलाओं और किशोरियों को एकजुट करता है, अपने हकों के प्रति जागरूक बनाता है.

दिशा

अपने अनुभवों से हम जानते हैं कि पैदाइश के पहले से ही लड़की के लिए संघर्ष शुरू हो जाता है. उसके खान-पान, पढ़ाई-लिखाई, आने-जाने सब पर रोकटोक होती रहती है. उसकी आवाज को दबा दिया जाता है. ऐसे माहौल में सहजनी शिक्षा केंद्र लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों की माँग को उठाता है और उस प्रक्रिया में उन्हें सशक्त बनने का मौका देता है. प्रशिक्षण शिविर, कार्यशाला, मेला-सम्मेलन, धरना-प्रदर्शन, जन सुनवाई आदि में उनकी भागीदारी के ज़रिए उनकी आवाज को धार देता है.

घर हो या बाहर, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना महिलाओं और किशोरियों को सशक्त बनाता है. पठन-पाठन सामग्री के जरिए महिलाएँ और किशोरियाँ शिक्षा के अधिकार. काम के अधिकार, स्वास्थ्य के अधिकार, भोजन के अधिकार और ढेर सारे अन्य कानूनी अधिकारों की समझ बनाती हैं. तभी वे मुद्दों पर पहल कर पाती हैं.

मुद्दे

सहजनी शिक्षा केंद्र की महिलाएँ और किशोरियाँ स्थानीय मुद्दों और व्यापक सामाजिक मुद्दों पर चल रहे आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं. इनके मुख्य मुद्दे रहे हैं – काम का अधिकार, खाद्य सुरक्षा अधिकार में दोपहरी का भोजन, राशन, महिला हिंसा, जल्दी शादी, शिक्षा का अधिकार, पेंशन आदि.

बुनियादी अधिकारों से भी वंचित होना महिलाओं की सामान्य जिंदगी का हिस्सा है. लेकिन इस स्थिति को हर हाल में बदलना जरूरी है और यह बिना आवाज उठाए होगा नहीं. आजाद और लोकतांत्रिक देश की नागरिक होने के नाते महिलाओं को इसका पूरा हक है. इसके लिए धरना-जुलूस, मेला-सम्मेलन, जन सुनवाई, घेराव-प्रदर्शन सभी रणनीतियों का इस्तेमाल वे करती हैं.

(क) काम का अधिकार – मनरेगा
ललितपुर में मुख्यतः दलित और आदिवासी समुदाय सबसे वंचित समुदाय है. उनके पास न खेती के लिए बड़े-बड़े जोत हैं और न कोई नियमित रोजगार. दिहाड़ी मजदूरी और काम के लिए पलायन सामान्य बात है. उनमें महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है. गरीबी, असाक्षरता, बेरोज़गारी का चक्र चलता ही रहता है और उस चक्र में बीमारी भी जुड़ जाए तो हालत और अधिक बिगड़ जाती है.

2006 में जब मनरेगा यानी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून लागू हुआ तब सहजनी शिक्षा केंद्र ने जरूरी माना कि महिलाओं को इससे परिचित कराया जाए. इसके लिए प्रशिक्षण आयोजित किए गए. 2010 के बाद सहजनी शिक्षा केंद्र ने मनरेगा को अभियान की तरह लिया. इसका उद्देश्य था अपनी जगह पर रोजगार हासिल करने के हक और साक्षरता को जोड़ना.

गाँव-गाँव में बैठकें की गईं आसान भाषा में मनरेगा की जानकारी देते हुए पर्चे बनाए गए. काम माँगने की अर्जी लिखना सिखाया गया, जॉब कार्ड के बारे में बताया गया, उसमें होनेवाली गड़बड़ी और कार्यस्थल पर मिलनेवाली सुविधाओं की निगरानी करना सिखाया गया, मजदूरी की दर को लेकर आवाज उठाई गई. महिलाओं को काम नहीं मिल रहा था, इसे लेकर जोर-शोर से माँग की गई.  इसके लिए दीवार लेखन, धरना-प्रदर्शन सबमें महिलाओं ने हिस्सा लिया. 2009 में विश्व साक्षरता दिवस के मौके पर महिला शिक्षा और काम का अधिकार मेला भी महरौनी में आयोजित किया गया.

मनरेगा का सोशल ऑडिट कार्यक्रम बहुत सफल हुआ. आगे चलकर महिलाओं को मनरेगा में मेट के रूप में काम करने का मौका मिला और उनको प्रशिक्षित करने का जिम्मा सहजनी शिक्षा केंद्र ने उठाया. राज्य और राष्ट्रीय स्तर के संगठनों के साथ मिलकर सहजनी शिक्षा केंद्र ने दलित, आदिवासी और अन्य वंचित समुदाय की महिलाओं की काम में भागीदारी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. नारीवादी नजरिए को लाते हुए संस्था ने तकनीकी और कौशल वाले कामों में भी महिलाओं को आगे लाने का ठोस प्रयास किया. करीब 60 महिलाओं को मनरेगा के तहत महिला मेट बनने का प्रशिक्षण भी दिया. करीब 20 महिलाएँ मेट बनीं और अपने गाँव में उन्होंने मनरेगा के काम करवाए.

सहजनी शिक्षा केंद्र की लगभग 2000 से भी ज्यादा महिलाओं ने अपनी साक्षरता का इस्तेमाल करते हुए मनरेगा में स्थानीय प्रशासन से काम माँगा. माँगपत्र भरना, जॉब कार्ड व मजदूरी का हिसाब-किताब रखना, बैंक में अपना खाता खुलवाना, घर और बाहर में अपने साथ होनेवाले अन्याय के खिलाफ बोलना – उनको सशक्त बनाने की ही प्रक्रिया है.

(ख) खाद्य सुरक्षा अधिकार
अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, काम की खोज में पलायन और जेंडर-जाति आधारित भेदभाव ने न जाने कितने लोगों को भूखा रहने पर मजबूर किया है. पूरी दुनिया में यह समस्या है और भारत उन देशों में से है जहाँ भूख से मौत की खबर नई नहीं है. उसमें ललितपुर की स्थिति अच्छी नहीं है. खासकर बुंदेलखंड में अक्सर सूखा पड़ता है.

इसलिए सहजनी शिक्षा केंद्र ने खाद्य सुरक्षा अधिकार के मुद्दे को आरंभ से उठाया है. इसमें बच्चों के दोपहरी के भोजन – मिड डे मील (MDM) की निगरानी और राशन वितरण व्यवस्था की निगरानी दोनों शामिल हैं. एक साल में 25 पंचायतों के अंतर्गत आने वाले 50 स्कूलों में मिड डे मील योजना को सही से लागू किया जा रहा है या नहीं, इसके लिए उनका निरीक्षण किया गया. इसका नतीजा यह रहा कि मिड डे मील की व्यवस्था में सुधार हुआ और वंचित समुदाय के बच्चों के साथ होनेवाले भेदभाव में कमी आई. 2007 में होनेवाले महिला शिक्षा और सूचना का अधिकार मेला ने भी इस अभियान को मजबूत किया.

(ग) शिक्षा का अधिकार
साक्षरता ने महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है. उन्होंने अपने शिक्षा के अधिकार के साथ अपने बच्चों के शिक्षा के अधिकार को भी समझा. उन्होंने समुदाय के साथ यह मुद्दा उठाया कि स्कूलों में दलित, आदिवासी और अन्य वंचित समुदाय के बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता है. खासकर दोपहरी के भोजन में काफी भेदभाव बरता जाता है. भ्रष्टाचार का नतीजा यह है कि दोपहरी का भोजन एकदम खराब है. उसकी गुणवत्ता की निगरानी की जरूरत महसूस करके महिलाओं ने समूह बनाए. वे अलग अलग गाँवों में स्कूल जाकर जिम्मेदार शिक्षकों से पूछताछ करतीं और भेदभाव की घटनाओं का जवाब माँगतीं.

शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) आने के बाद सहजनी शिक्षा केंद्र में महिलाओं को उसकी जानकारी दी गई. उन्होंने समझा कि स्कूल मैनेजमेंट कमिटियों – SMC में महिलाओं की उपस्थिति के द्वारा ही यह कानून असलियत में बदल सकता है. स्कूलों में हस्तक्षेप के लिए जरूरी है कि शिक्षा, सशक्तीकरण और साक्षरता साथ आएँ. इस बात को ध्यान में रखते हुए एन सी पी सी आर – NCPCR के साथ मिलकर सोशल ऑडिट (सामाजिक लेखा परीक्षण) किया गया.

सोशल ऑडिट ललितपुर के 5 ब्लॉकों (महरौनी, मड़ावरा, बिरबिरधा, बारा और जखोरा) की 25 ग्राम पंचायतों के 98 गाँवों के 15000 परिवारों का किया गया. इस प्रक्रिया में स्थानीय संदर्भ की शैक्षिक सामग्री भी विकसित की गई . समुदाय को संगठित करने, समुदाय स्तरीय बैठकें बुलाने और चर्चाएँ चलाने के लिए गाँवों में फड़ का इस्तेमाल किया गया. (फड़ कपड़े का होता है. काफी लंबा-चौड़ा जिसे लपेटकर रखते हैं. इसपर चित्र बने होते हैं. इसे गाना गाते हुए और चित्र एवं घटनाओं का विवरण देते हुए दिखाया जाता है.) इसके अलावा परचा भी बना और न्यूजलेटर भी.

सोशल ऑडिट के अंतर्गत मुख्यतः यह पता करने की कोशिश की गई कि स्कूलों में कितने बच्चों का दाखिला हुआ है, कितने बच्चे ड्रॉपआउट हुए हैं और वे किस जाति के थे . साथ ही यह भी देखा गया कि स्कूलों की हालत कैसी है, टीचर आते हैं या नहीं और बच्चों को वहाँ क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं.

(घ) महिला हिंसा
जातिवादी एवं सामन्तवादी सोच के कारण बुंदेलखंड में औरतों की स्थिति काफी गंभीर है. यहाँ छेड़खानी, यौन उत्पीड़न, अपहरण, बलात्कार आम बात है. दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों को सवर्ण जाति के संपन्न लोगों के यहाँ मजदूरी करके अपनी जीविका चलानी पड़ती है. अपना दबदबा और नियंत्रण बनाए रखने में हिंसा एक महत्त्वपूर्ण हथियार है.

महिला हिंसा के रूप भी कई हैं. ललितपुर के इलाके में दलित महिलाओं को सवर्ण जाति के पुरुषों के सामने या उनके दरवाजों के सामने से चप्पल उतारकर हाथ में लेकर चलना पड़ता है. अगर महिलाएँ विरोध करती हैं तो उनको अलग-अलग तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है. आदिवासी महिलाएँ जंगल से सूखी लकड़ी, पत्ते, जड़ी-बूटी आदि एकत्र करती हैं. वहाँ वन विभाग के पुरुष अधिकारी, कर्मचारी वगैरह यौन शोषण का मौक़ा नहीं छोड़ते हैं. सामाजिक-आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से हिंसा की घटनाओं के खिलाफ महिलाओं का आवाज उठाना बहुत चुनौती भरा है. कानून की शरण में जाने के लिए समय, पैसा, सहयोग सबकी जरूरत है.

इस पृष्ठभूमि में पिछले 16 सालों में सहजनी शिक्षा केंद्र ने लगातार काम किया है. कार्यकर्ताओं, शिक्षिकाओं, साक्षरता केंद्र में आनेवाली महिलाओं व किशोरियों के साथ यह गाँव की अन्य महिलाओं को भी मजबूती देता है. वे इसे अपनी जगह मानती हैं और अक्सर अपने दुख-दर्द की साझेदारी करती हैं. आए दिन महिला हिंसा के केस आते रहे हैं. उनमें घरेलू हिंसा, छेड़खानी के केस बहुत ज्यादा हैं. बीच-बीच में हत्या व बलात्कार के केस भी आते हैं. घर-परिवार और समुदाय के साथ बातचीत करना, सुलह करना और जरूरत पड़ने पर कानूनी रास्ता अपनाना संस्था के नियमित काम का हिस्सा हैं.

(ड.) जल्दी शादी
ललितपुर में आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ बहुत गहरी हैं. गरीब दलित और जनजातीय समुदायों की किशोरियाँ एक ऐसे पितृसत्तात्मक परिवेश में रहती हैं जहाँ उनके लिए घर से निकलकर पढ़ाई के लिए जाना और कुछ सीखना गंभीर चुनौती है. कई बार उन्हें हिंसा का भी सामना करना पड़ता है. वे भूमिहीन और जीवनयापन के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर आश्रित परिवारों की हैं. पलायन और विस्थापन के फलस्वरूप किशोरियों को अक्सर समय से पहले ही पढ़ाई छोड़ देनी पड़ती है. बाल विवाह भी एक व्यापक परिघटना है. उसे समझने के लिए गरीबी, जाति-जेंडर आधारित भेदभाव, यौन हिंसा के भय आदि के साथ शिक्षा के मुद्दे के जुड़ाव को देखना जरूरी है.

परिवारवाले लड़कियों की जल्दी शादी करके सामाजिक सुरक्षा खोजने लगते हैं. उन्हें डर लगता है कि लड़कियाँ अपनी मर्जी से रिश्ता बना लेंगी. उनकी नजर में लड़कियों की जिंदगी में शादी ही सबसे अहम है, उसी की प्राथमिकता है. उसका सीधा असर लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य सब पर पड़ता है. इस माहौल में सहजनी शिक्षा केंद्र ने जल्द विवाह के मुद्दे पर समझ बनाने का बीड़ा उठाया. लड़कियों की आकांक्षाओं से जूझना भी एक कठिन चुनौती है. इसको सुचिंतित रणनीतियों और कार्यक्रमों के जरिए संबोधित किया गया. इस क्रम में नारीवादी नजरिए से काम करते हुए यौनिकता के मुद्दे को ध्यान में रखा गया.

कम उम्र में शादी लड़के और लड़कियों दोनों पर असर डालता है. यह उनकी पढ़ाई-लिखाई और आजीविका के अवसरों को भी बुरी तरह अस्त-वयस्त कर देती है. इसके चलते बहुत कम उम्र से ही लड़कियों को वयस्क जीवन के रास्ते पर ढकेल दिया जाता है. उनके पास अपने जीवन को प्रभावित करनेवाले फैसले लेने की न क्षमता होती है न उसका मौका मिलता है. उनको ऐसी कोई जगह नहीं मिलती जहाँ अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, यारी-दोस्ती व अन्य संबंधों आदि के बारे में किसी भी तरह की चर्चा की जा सके.

गाँवों में कम उम्र में शादी के चलन की गहराई और व्यापकता को समझने के लिए इस संदर्भ में सहजनी शिक्षा केंद्र ने निरंतर की टीम के साथ मिलकर सर्वेक्षण किया. जेंडर आधारित हिंसा और बाल विवाह के मुद्दे पर स्टाफ और सामुदायिक नेताओं (समितियों) का क्षमतावर्धन किया. समुदाय स्तरीय बैठकों और गोलबंदी के लिए काम किया. जागरूकता पैदा करने के लिए सामग्री बनाई, उसे छापा और उसका वितरण किया. ऐसे मंच बनाए जहाँ कम उम्र में शादी और उसके दुष्परिणामों के मुद्दों पर गंभीरता से बात की जा सके. लड़कों और लड़कियों की इच्छाओं और कामनाओं के बारे में भी बात करने के मौके ढूँढे गए.

इसके साथ ही गाँवों में महिलाओं की समितियाँ बनाई गई हैं जिनकी नियमित बैठकों में समस्या के समाधान पर चर्चा होती है. सहजनी शिक्षा केंद्र का उद्देश्य है कि कम उम्र में शादी सहित जाति और जेंडर के कठोर नियमों और महिलाओं पर नियंत्रण के मुद्दों पर समुदाय की सोच में बदलाव लाया जाए. कम उम्र में शादी के उन्मूलन और सशक्तीकरण करनेवाली शिक्षा पर मुख्य जोर है. इस मुद्दे को मुख्यधारा की शैक्षिक प्रक्रियाओं में भी जगह मिले, इसका प्रयास किया जा रहा है.

स्कूली शिक्षा

महिलाओं और किशोरियों पर केंद्रित सहजनी शिक्षा केंद्र ने अपने काम का विस्तार किया है. पिछले डेढ़ दशक में इसने अपनी पद्धतियों और रणनीतियों को भी तराशा है. समग्र रूप से साक्षरता व शिक्षा की प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से संस्था ने सीधे बच्चों के साथ भी काम शुरू किया है. हालाँकि शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूलों से सहजनी शिक्षा केंद्र का पुराना रिश्ता रहा है. स्कूलों की निगरानी और SMC में महिलाओं की भागीदारी ने संस्था को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के सवालों से रूबरू कराया है.

अपना दायरा और अपनी रफ्तार बढ़ाते हुए स्कूली शिक्षा में हस्तक्षेप का फैसला 2008 में लिया गया. स्थानीय टीम ने स्कूली शिक्षा के काम की बागडोर सँभाली. इसने साक्षरता कौशल के अलावा उनकी नेतृत्व क्षमताओं को भी निखारने का मौका दिया. स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखने में महिलाओं और किशोरियों के साथ काम करने के अनुभव से बहुत मदद मिली. इसके लिए ब्रिज कोर्स, आवासीय स्कूल, कोचिंग क्लास, कंप्यूटर क्लास, सूचना, संचार और प्रौद्योगिकी केंद्र (ICT सेंटर), शिविर आदि रणनीतियों का सहारा लिया गया. उनके पाठ्यक्रम से लेकर पूरे स्वरूप को गहन शोध और चर्चा के बाद तय किया गया.

इस पहल के परिणाम अच्छे दिख रहे हैं. स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी है तो उनका ठहराव भी बढ़ा है यानी स्कूल में उनके टिकने, पढ़ाई जारी रखने की संख्या बढ़ी है.

दिशा

हम जानते हैं कि सरकार वयस्क शिक्षा के मुकाबले बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देने का दावा करती है, मगर प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर भी बहुत सवाल उठते हैं. स्कूलों में वंचित समुदाय के बच्चों का यदि नामांकन हो जाता है तब भी उनकी शैक्षिक स्थिति में बहुत सुधार नहीं दिखता है. कई सालों तक स्कूलों में रहने के बावजूद उनमें पढ़ने-लिखने के बुनियादी कौशल नहीं हैं. कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति उनको लगातार हाशिये पर धकेलती जाती है. बच्चे निरक्षर बेरोजगार गरीब वयस्कों के चक्र में आ जाते हैं और उनकी सारी क्षमताएँ धीरे-धीरे इस्तेमाल न किए जाने के कारण खत्म होने लगती हैं.

इन स्थितियों से अच्छी तरह परिचित होने के कारण सहजनी शिक्षा केंद्र ने स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता के सवाल को सबसे ऊपर रखा. स्कूल जेंडर-जाति-वर्ग आदि आधारित भेदभाव से मुक्त हो सके, बराबरी का व्यवहार सबके साथ हो और शिक्षा की प्रक्रिया सशक्तीकरण से जुड़े, इस नजरिए के साथ काम किया गया. स्कूल तक पहुँच बढ़ाना खोखले अर्थ में न हो, इसका लक्ष्य लेकर चला गया. शिक्षा सच्चे अर्थ में परिवर्तनकारी और मुक्तकारी हो, यही सपना है.

रणनीतियाँ

(क) जनीशाला
बड़ी उम्र की लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा समाज की प्राथमिकता नहीं है. उनके लिए अपनी शिक्षा आगे जारी रखने के लिए कोई मंच नहीं है. गरीबी, बेरोजगारी और पलायन समस्याओं को और जटिल कर देते हैं. ऐसे में सहजनी शिक्षा केंद्र ने किशोरियों को आवासीय सुविधाओं के साथ शिक्षा प्रदान करने के लिए जनीशला को शुरू किया. यह 8 महीने का आवासीय स्कूल जैसा था. इसमें दो तरह के कोर्स हैं – अल्पकालीन और दीर्घकालीन.

अल्पकालीन कोर्स उन लड़कियों के लिए है जिन्होंने या तो स्कूल छोड़ दिया है या स्कूल छोड़नेवाली हैं. यह ब्रिज कोर्स है जिसके जरिए उन्हें मुख्यधारा के स्कूलों में वापस लाया जाता है. दीर्घकालीन कोर्स उन लड़कियों के लिए है जिन्होंने काफी पहले स्कूल छोड़ दिया और लगभग निरक्षर ही हैं या जो कभी स्कूल नहीं गई हैं. उन्हें सीखने का व्यापक अनुभव प्राप्त होता है. और 5 वीं से 8 वीं कक्षा की परीक्षाएँ दे सकती हैं.
जनीशला के पाठ्यक्रम में भाषा और हिसाब के अलावा 5 थीम हैं जो सामाजिक विज्ञान (इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, नागरिक शास्त्र) और विज्ञान से संबंधित हैं। ये हैं : ‘हमारा शरीर’, ‘भूमि, जल, जंगल’, ‘बाजार’, ‘समाज’, ‘मीडिया’.

(ख) ब्रिज कोर्स
अंग्रेजी भाषा के शब्द ब्रिज का मतलब है पुल. यह स्कूली पढ़ाई छोड़ चुके या कभी स्कूल न जा सकनेवाले बच्चों, खासकर किशोरियों को वापस औपचारिक शिक्षा से जोड़ने का काम करता है. मुख्यतः यह आवासीय स्कूल के तौर पर चलाया जाता है. जनीशाला इसी श्रेणी में आता था, मगर अब रणनीति बदली है. अब उतनी लंबी अवधि का ब्रिज कोर्स नहीं चलाया जाता है. उसकी जगह सहजनी शिक्षा केंद्र ने ब्लॉक स्तर पर 10 से 15 दिन का या महीने भर का ब्रिज कोर्स शुरू किया है.

इसमें असल चुनौती है गाँवों से ब्लॉक स्तर तक किशोरियों को लाना. आवासीय होने के नाते आसानी से घर-परिवार की अनुमति नहीं मिलती है. विश्वास का माहौल बनाने के लिए सहजनी समुदाय में कई कई बैठकें करती हैं और अभिभावकों को तैयार करती हैं. उनकी असुरक्षा की भावना को दूर करना आसान बात नहीं है. पितृसत्ता की जकड़बंदी के साथ जाति आधारित भेदभाव और गरीबी की मार भी है.

दलित और आदिवासी समुदाय के अतिरिक्त संस्था ने अन्य पिछड़ी जातियों तक भी अपनी पहुँच बनाई. इससे उनका विश्वास बना और पहली बार पिछड़ी जाति की किशोरियाँ गाँव से बाहर पढ़ने के लिए ब्लॉक में आकर रहीं.

जल्द विवाह के मुद्दे पर काम ने भी ब्रिज कोर्स में लड़कियों की संख्या बढ़ाने में भूमिका अदा की है. सहजनी की मदद से वे अपनी साक्षरता मजबूत करने के लिए ब्लॉक स्तर पर 10 से 15 दिन के आवसीय ब्रिजकोर्स में आती हैं. वे एक जगह रुकती हैं और उस दौरान एक-दूसरे की रूढ़िवादी मान्यताओं को देख-परख कर फैसला करने लगती हैं. उनकी एकजुटता, उनकी साझेदारी उनके व्यक्तित्व को नया आयाम देती है. आज 500 सौ किशोरियाँ अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं. शादी के बाद भी 300 सौ किशोरियाँ अपनी पढ़ाई कर रही हैं.

(ग) सूचना, संचार और प्रौद्योगिकी केंद्र – आई सी टी केंद्र
नई पहल करते हुए सहजनी शिक्षा केंद्र ने 2015 से ब्लॉक स्तर पर आई सी टी केंद्र चलाना शुरू किया है. इसका लाभ किशोर-किशोरियों के अलावा भी लोग उठा सकते हैं. सूचना क्रांति ने लोगों के सोचने के तरीके, जानकारी हासिल करने के तरीके और रफ्तार सबको प्रभावित किया है. डिजिटल माध्यम की असीम संभावनाओं को टटोलने और सशक्तीकरण की प्रक्रिया से उसे जोड़ने की दिशा में यह मददगार होगा, इसकी पूरी उम्मीद है.

पहला आई सी टी केंद्र मेहरौनी ब्लॉक में सहजनी शिक्षा केंद्र के दफ्तर में शुरू हुआ और दूसरा मडावरा ब्लॉक में चल रहा है. फिलहाल इसमें कंप्यूटर की क्लास चल रही है. बीच बीच में फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी आदि के कई प्रशिक्षण आयोजित किए गए हैं. जैसे महिला मेट को या नेतृत्व की भूमिका में काम कर रही नवसाक्षर महिलाओं को कंप्यूटर का इस्तेमाल सिखाने का प्रशिक्षण.

नारीवादी नजरिए से यह हस्तक्षेप बहुत मायने रखता है. प्रौद्योगिकी से, तकनीकी ज्ञान से लड़कियों और महिलाओं को तो खासकर दूर रखा जाता है. कंप्यूटर, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी आदि को लड़कों का हुनर माना जाता है क्योंकि इसके साथ बाहर आने-जाने की आजादी भी चाहिए होती है. इस मान्यता को चुनौती देते हुए संस्था ने सिर्फ किशोरियो के लिए 6 माह का कंप्यूटर सेंटर खोला है. वे खूब मन लगाकर सीखती हैं और देश-विदेश की की जानकारी ले रही हैं. इससे वे अपनी पढ़ाई से जुड़ी जानकारियों को भी मजबूत कर रही हैं. पढ़ाई से जुड़ी नौकरी का फॉर्म निकलता है तो उसे भरने लगी हैं. जानकारी से लैस होकर वे अपने साथ हो रही गैर बराबरी पर सवाल उठाने लगी हैं. अपने आने-जाने की पाबंदियों से लेकर वे सभी तरह के भेदभाव का विरोध करने लगी हैं.

(घ) स्कूल शिविर
सहजनी शिक्षा केंद्र की कार्यकर्ताओं और शिक्षिकाओं ने स्कूलों में शिविर लगाने का कार्यक्रम शुरू किया है. वे उस दौरान स्कूल के अन्य शिक्षक-शिक्षिकाओं को सीखने-सिखाने की नारीवादी पद्धतियों से परिचित कराती हैं. नारीवादी नजरिए से तैयार पठन-पाठन सामग्री का भी इस्तेमाल करती हैं. यह एक तरह से अपनी सीख और समझ का समुदाय में साझेदारी है.

शिविर के लिए वे गाँव चुने गए हैं जहाँ पहले चरण में संस्था साक्षरता का काम कर चुकी है. इस दृष्टि से शिविर उस काम को आगे बढ़ाने और शिक्षा के आन्दोलन को जारी रखने के मकसद को पूरा करता है.

स्कूलों के प्रधानाचार्य भी इसका लाभ देख रहे हैं और आगे बढ़कर शिविर चलाने में सहयोग कर रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं श्री टीकाराम अहिरवार जिनका कहना है कि “ हमारे स्कूल में महिला स्टाफ नहीं है. सहजनी शिक्षा केंद्र के शिविर से लड़कियों को फायदा हुआ है. उनको समय समय पर आते रहना चाहिए.”

प्रशिक्षण और संदर्भ समूह

महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास करना, उनको नेतृत्वकारी भूमिकाओं में लाना सहजनी शिक्षा केंद्र के काम का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है. यह दो तरीके से किया जाता रहा है – पहला है स्थानीय टीम को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए सक्षम बनाना और दूसरा है गाँव के स्तर के  महिला समूहों को सशक्त करना.

साक्षरता के क्षेत्र में जो हस्तक्षेप होते रहे हैं उनमें प्रायः साक्षरता शिक्षक-शिक्षिका और जमीनी स्तर पर गोलबंदी करनेवालों की भूमिका अलग अलग होती है. लेकिन सहजनी शिक्षा केंद्र उनसे अलग इस मायने में है कि यहाँ सहजनी दोनों भूमिकाएँ निभाती हैं. पिछले सालों में लगातार काम करते हुए सहजनी की मजबूत टीम उभरी है जो जिम्मेदार है और साक्षरता को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध भी. यह चुनौती भरा रास्ता है क्योंकि साक्षरता सीखने-सिखाने के लिए अलग किस्म का हुनर चाहिए और गाँव-गाँव में जाकर महिलाओं को इकट्ठा करने के लिए उससे अलग किस्म के हुनर की जरूरत होती है. फिर भी सहजनी टीम ने दोनों हुनर को हासिल किया. सहजनी टीम पढ़ाने के साथ-साथ अन्याय एवं हिंसा के मामलों में दखल देने, स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करने और समुदाय को ढेर सारी जानकारियाँ मुहैया कराने का काम भी बखूबी करती है.

अब सहजनी शिक्षा केंद्र की पहचान जेंडर और शिक्षा पर काम करने वाले स्थानीय संगठन के रूप में स्थापित हो गई है. पूरे ललितपुर जिले में कोई दूसरा समूह नहीं है जो जेंडर, सशक्तीकरण और वयस्क शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहा हो और वह भी दलित एवं आदिवासी महिलाओं के साथ. इस तरह सहजनी शिक्षा केंद्र न केवल ललितपुर जिले में, बल्कि समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में संदर्भ समूह के रूप में अपनी खास पहचान रखता है. इतना ही नहीं, सहजनी शिक्षा केंद्र के साक्षरता और शिक्षा कार्यक्रम ने राष्ट्रीय स्तर पर भी संदर्भ समूह के तौर पर काम किया है. यहाँ साक्षरता के मुद्दे पर काम करने की प्रक्रिया और उसके असर को देखने देश-विदेश से लोग आते हैं.

सहजनी शिक्षा केंद्र अलग अलग संस्थाओं की जरूरत और उनके संदर्भ के अनुसार जेंडर एवं  शिक्षा, महिला साक्षरता, हक एवं हकदारी, साक्षरता सामग्री के निर्माण एवं इस्तेमाल आदि के मुद्दों पर प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का आयोजन करता रहता है. उनमें भाग लेनेवाले लोगों के हिसाब से प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का खाका बनाया जाता है चाहे वे समुदाय स्तर पर काम करनेवाली संस्थाओं के स्टाफ हों या शिक्षक-शिक्षिकाएँ हों या साक्षरता कार्यक्रम चलानेवाले फंडर हों या वंचित और अल्पसंख्यक समुदाय की किशोरियाँ एवं महिलाएँ हों.

प्रशिक्षण और कार्यशालाओं के लिए सहजनी शिक्षा केंद्र से संपर्क करें   sahajni.lalitpur02@gmail.com