इलाका – 2000 के नवंबर महीने में निरंतर ने जमीनी स्तर पर हस्तक्षेप करने के लिए इलाका चुनने पर सोचना आरंभ किया. शर्त थी कि इलाका दलित बहुल हो, जहाँ सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं की पहुँच न हुई हो और जहाँ बुनियादी सुविधाएँ हों. इसके लिए जो प्रक्रियाएँ अपनाई गईं, वे थीं – लोगों और अधिकारियों से मिलना, सुझाव लेना, जानकारी इकट्ठा करना, बैठक करना आदि.
महिलाओं के साथ काम करनेवाली कार्यकर्ताओं की तरफ से जमीनी हस्तक्षेप करने के लिए बुंदेलखंड के ललितपुर जिले का नाम सुझाव के तौर पर आया. निरंतर भी बुंदेलखंड के बाँदा-कर्वी में काम करने के कारण वहाँ के स्थानीय मुद्दों से परिचित था. ललितपुर की गिनती भारत के सबसे पिछड़े जिलों में होती थी. इसके अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वाले क्षेत्र में महिला साक्षरता दर 20% से भी कम थी. लिंग अनुपात 2001 में 1000 पर 884 था. समाज में जाति के आधार पर बहुत भेदभाव था. यहाँ तक कि दलित महिलाओं को सवर्ण लोगों के सामने चप्पल पहनने की इजाजत नहीं थी. बहुतों को चप्पल उतारकर अपने सर पर रखकर सवर्ण लोगों के सामने से गुजरना होता था.
आरंभिक तैयारी के बाद सिलसिला चला ललितपुर जिले के ब्लॉक और गाँवों के नक्शे समझने का. 2001 के जनवरी महीने में इलाके को परखने के लिए पहला दौरा किया गया. मई-जून के महीने में गाँवों का लंबा-लंबा दौरा चल रहा था. धीरे-धीरे फील्ड विजिट नियमित होती गई. कहाँ साक्षरता केंद्र बनाया जाए, इसके लिए 5 गाँवों में PRA (सहभागितापूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन) किया गया और दूसरे गाँवों में सघन बैठकें की गईं.
साक्षरता और शिक्षा के काम का खाका बनाने के साथ आर्थिक मदद हासिल करने के लिए प्रस्ताव लिखा जा रहा था. साक्षरता का काम टिकाऊ हो सके, इसलिए सहजनी शिक्षा केंद्र को संसाधनों की जरूरत थी. 2002 के मई महीने में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट – SDTT से अनुदान की मंजूरी मिली. इससे काम को गति मिली. 2002 के अक्टूबर-नवंबर से मेहरौनी ब्लॉक के चुने हुए 10 गाँवों में साक्षरता केंद्र खुल गए. पहले मेहरौनी और मडावरा ब्लॉक दोनों का चुनाव हुआ था, मगर मडावरा में बुनियादी सुविधाओं के नहीं रहने के कारण मेहरौनी से काम शुरू किया गया.