पार्वती
गहरे नीले रंग की स्कर्ट और आसमानी रंग की शर्ट. हाँथ मे कपड़े का झोला, उम्र करीब 15-16 साल की. डोंगर गाँव से शायद वो पहली लड़की थी जो कैंप में पढ़ने के लिए आई थी. चेहरा आत्मविश्वास से भरा और घमंड से भी! घमंड इस बात का कि वह अपने गाँव की अकेली लड़की थी जिसकी अभी शादी नहीं हुई थी और अपने घर की खेतीबाड़ी अपनी माँ के साथ सँभालती थी. उसका स्कूल में नाम तो लिखा था, लेकिन शायद ही कभी वह स्कूल गई.
पार्वती आगे पढ़ना चाहती थी. कैंप में पढ़ने में उसका मन बहुत लगता. लेकिन शायद ही उसे कैंप के नियम-कानून अच्छे लगते. न कैंप का खाना उसे रुचता और न ही लोगों के साथ घुलना-मिलना पसंद आता. हर बार कैंप में आने के लिए पार्वती से जद्दोजहद करनी पड़ती. फिर भी साक्षरता के जितने कैंप हुए, उनमें से ज्यादातर में उसने हिस्सा लिया.
जब जनीपत्रिका (जो कि बुंदेली भाषा में नवसाक्षरों की पत्रिका थी) निकलने की बात हुई तो पार्वती इस टीम में शामिल हुई . इसके बाद पार्वती ने साक्षरता केंद्र चलाया. साथ ही साथ उसने अपनी पढ़ाई मजबूत की.
आज वह फील्ड सुपरवाइजर के पद पर काम कर रही है और मेहरौनी ब्लॉक के 7 सूचना केंद्रों में सहयोग करती है.
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